
वाटिका में आम्र-तरु फैला विशालसांध्य-घन-सी छाँह और पुलकित बयार ।वृक्ष के नीचे खिली है वल्लरीसूर्य का आतप जलाता बेशुमार । स्नेह का आँचल पसारे पितृ-समआम्र-तरु देता नमी और आर्द्रता ।छत्रछाया में खिली फिर वल्लरीप्राप्त करती प्रेम-रस की स्निग्धता । दिन महीने साल बीते इस तरहदूज के चंदा-सी पुष्पित-पल्लवित ।लहलहाती खिलखिलाती मंद स्मितपा पिता का हाथ…
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