विविधा


  • उदय वापस आ गया !

    उदय बचपन में अक्सर माँ से कहता – “माँ ! तुमने बिंदी लगा ली ?अब मुझे भी एक बिंदी लगा दो ना ।माँ ! तुमने काजल लगा लिया ?अब मुझे भी काजल लगा दो ना ।” “ ये लो तुम्हारी बिंदी और ये लो तुम्हारा काजल” कहकर माँ उदय को सजा देती ।उदय का मन…

  • भज्जू मिरासी का इकतारा

    वीर जब बोलना शुरू करता तो उसके हृदय की भाव -तरंगें उछाल मारकर सबको भिगो देतीं ।उसकी बातें सुनकर लगता मानो पूरे गाँव -इलाक़े की सैर पूरी कर ली ।उसने बोलना शुरू किया — “ मैं जो कहूँगा ,अपनी आँखों देखी कहूँगा ,कानों सुनी नहीं ।मैंने जो जिया,वही कहूँगा ,मन से गढ़ी हुई नहीं ।सुनती…

  • हरे – हरे दोने

    और लो देखते – देखते सावन भी आ गया ।सावन की फुहार के साथ ही वन -पर्वत धुल गए ,वनस्पतियाँ धुल गईं ।धरती का अंग -अंग खिल गया ।आकाश से गिरने वाली झड़ियाँ ऐसी लग रही हैं जैसे इन्द्रदेव ने चाँदी की जंजीरों के झूले डाल दिये हों और मेरा मन लंबी पेंग भरकर सीधे…

  • मेरी खिड़की का कैनवस

    मेरे घर की खिड़की पे पानी सा-शीशा हैपानी-सा शीशा कैनवस बन जाता है । क़ुदरत के रंग और मौसम की रंगतख़ुद में उतारकर अद्भुत बन जाता है । खिड़की के कैनवस पर शाखें इतरातींनए रूप-रंग चित्रकारी दिखातीं ।पेड़ों के झुरमुटों को हवा पंख देतीहिलाकर झुला कर चुपचाप सरक लेती । जब आया पतझड़ तो पत्तियाँ…

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