विविधा


  • बूढ़े जन

    बूढ़े जन को जब भी देखूँ,   बूढ़े तन को जब भी देखूँ  सारी ममता इन्हें लुटा दूँ,  मन करता है I  अपना सारा प्रेम लुटा दूँ,  यह लगता है I बचपन में जब आँखें खोलीं   रीता जीवन रीता तन- मन  किसकी छाँह तले अब जाऊँ, यह लगता था I  किसकी अंगुली पकड़ चलूँ  मैं, यह…

  • रामलीला की एक रात

    सावन -भादो के बादल जी भर के बरस चुके Iक्वार के आते-आते सारे बादल बरस बरस कर रीते हो गए I वर्षा  में नहायी प्रकृति खिल उठी Iलता -गुल्मों के वंदनवार विहँसने लगे Iशरद ऋतु के धवल आकाश में रुई के गद्देदार बादल बिछ गए I हवा की सरसराहट में गुलाबी ठंड की ताजगी महकने…

  • माँ के जौ

    पार साल  घर गई थी बचपन के गांँव से खूब मिली थी |  पूरे दस दिन रही थी  दिल की तमन्ना पूरी की थी |  आने की घड़ी पास आई  माँ  ने कहा, “क्या ले जाओगी ? ”   मैंने कहा , “बस माँ ! कुछ नहीं  मुझे थोड़े-से जौ दे देना | जौ,  जो अपनी मिट्टी…

  • हिरण -शावक

    सूरज की पहली किरण के धरती पर पड़ने से पहले ही हमेशा की तरह माँ ने दरवाजे खोल दिए Iआँगन में जाकर देखा– मजेटी  [मेहंदी] के पौधे गुलाबी फूलों के साथ मुस्कुरा रहे हैं I आँगन के सामने के खेत में अमरूद का पेड़ पहली बार फला है Iनए-नए पके अमरूद की खुशबू  हवा में…

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