
बूढ़े जन को जब भी देखूँ, बूढ़े तन को जब भी देखूँ सारी ममता इन्हें लुटा दूँ, मन करता है I अपना सारा प्रेम लुटा दूँ, यह लगता है I बचपन में जब आँखें खोलीं रीता जीवन रीता तन- मन किसकी छाँह तले अब जाऊँ, यह लगता था I किसकी अंगुली पकड़ चलूँ मैं, यह…

पार साल घर गई थी बचपन के गांँव से खूब मिली थी | पूरे दस दिन रही थी दिल की तमन्ना पूरी की थी | आने की घड़ी पास आई माँ ने कहा, “क्या ले जाओगी ? ” मैंने कहा , “बस माँ ! कुछ नहीं मुझे थोड़े-से जौ दे देना | जौ, जो अपनी मिट्टी…
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