माली-मालिन की जिंदगी भी कितनी दिलचस्प होती है Iहर रोज़ ज़मीन तैयार करो Iबीज बोओ Iपौध तैयार करो Iक्यारियाँ बनाकर पौधे रोपो और फिर इंतज़ार करो खिलखिलाते फूलों की नयी दुनिया का Iदुनिया में जितने कारोबार हैं उतनी ही होड़ भी मची हुई है Iहोड़ ऐसी कि जो कारोबारियों को न कभी थमने दे, न कभी रुकने दे Iकुछ हद तक मनुष्य की उन्नति के द्वार भी यही खोलती है I
भोला माली आज शहर गया हुआ था Iसाँझ के समय लौट कर आया तो अपनी मालिन के सामने बुदबुदाने लगा – ‘‘ओ हो हो ! यह कैसा मज़ेदार मुकाबला है ! सुनने में आया है कि इलाके भर की मालिनों को गुलाब के पचास -पचास पौधे दिए जाएँगे Iनियत समय पर जिस मालिन के बगीचे में सबसे अधिक और सबसे सुंदर गुलाब खिलेंगे ,वही अव्वल आएगी और भारी इनाम पाएगी Iएक गाँव से एक ही मालिन चुनी जाएगी I’’
भोला ने मालिन की ओर देखकर कहा, ‘‘विश्वा ! तुम अपना नाम लिखवा लो iतीन-चार महीने की बात है Iहम तुम मन लगाकर कठोर परिश्रम करेंगे Iभगवान ने सुन ली तो जिंदगी बदलते देर नहीं लगेगी Iसुना है सच्ची लगन का फल तो भगवान भी नहीं टाल सकता Iविश्वा को भोला की बात जँच गई Iसपनीली आँखों से उसने हामी भरी और मन तरंग से भर उठा I
अगले दिन चुनी गई मालिनों को पौधे मिले Iविश्वा अपने गुलाब के पौधे लिए लहराती हुई घर आई Iभोला क्यारियाँ तैयार कर रहा था Iविश्वा भी दिलो जान लगाकर जुट गई Iशाम तक बगीचे में सारे पौधे रोप दिए गए Iएक-एक पौधे की जड़ में मिट्टी के सुंदर थाल सज गए Iविश्वा रात भर सपने बुनती और भोर होने से पहले उठकर पौधों को पानी देती Iसुबह से दुपहरी और दुपहरी से साँझ तक वह पौधों की सेवा में लीन रहती –कभी गुड़ाई -निराई, कभी खाद -पानी, कभी घेर -बाड़ Iअव्वल आने की खुशी उसे पागल कर देती Iअपने गाँव -कबीले के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी Iमाथे से पसीना टपक रहा है, वह भूली रहती Iरोटी का समय हो गया, वह खोई रहती Iउसकी जी तोड़ मेहनत उसके सपनों को नए पंख देती और वह अदम्य साहस के साथ खिलाड़ी -सिपाही की भाँति डटी रहती I
ढाई-तीन महीने में विश्वा के बगीचे में बहार आ गई Iगुलाब की टहनियाँ सघन पत्र -दल से सज कर लहराने लगीं Iकोमल कलियों के कर्णफूल पहन डाली -डाली इतराने लगी Iनव पंखुड़ियाँ हवा में इत्र घोलने लगीं Iमुआयना करने वालों का एक दल वक्त -वक्त पर आता और गाँव -गाँव घूम कर चला जाता Iआसपास के इलाके में विश्वा के बगीचे की चर्चा होने लगी Iकोई कहता, ‘‘विश्वा के बगीचे जैसा इलाके भर में कोई दूसरा बगीचा नहीं Iगुलाब की ऐसी बेशुमार खेती मैंने तो पहले कभी नहीं देखी I’’ दूसरा कहता, ‘‘खून -पसीना एक कर दिया Iअव्वल तो उसी को आना चाहिए I’’ तीसरा कहता, ‘‘विश्वा की जीत पक्की है I’’
चार महीने हो गए Iगुलाब की खेती अपने चरम पर है Iकल नतीजे सुनाए जाएँगे Iलोगों के मन कौतूहल से भरे हैं Iकहीं उमंग -उत्साह है, कहीं आशंका Iविश्वा के मन में उपजी हलचल उसे सोने नहीं देती Iमन कभी उल्लास से भर जाता है तो कभी आशंकित हो उठता है Iआज की रात बस किसी तरह कट जाए Iकल तो पता चलना ही है Iरात के अंधकार में सारी धरती सो गई Iसारे रास्ते मौन हो गए Iविश्वा की आँखों में नींद का नामो -निशान तक नहीं Iओह ! यह क्या होने लगा ! अचानक ही आकाश में घोर गर्जना होने लगी Iदेखते ही देखते काले बादल घिर आए Iमूसलाधार बारिश के साथ प्रकृति का तांडव शुरू हुआ Iन जाने कहाँ से उत्पात मचाती आँधी आई और कुछ ही पलों में विश्वा का बगीचा तहस -नहस हो गया I
विश्वा की आँखों में अँधेरा छा गया Iवह विजय के बिल्कुल करीब थी Iआँधी ने उसके जीवन में प्रलय मचा दी Iएक आशा की डोर थी, वह भी टूट गई Iकितना पसीना बहाया था उसने अपने बगीचे के लिए Iउसने गुलाब के एक -एक पौधे के लिए अपना तन -मन दे दिया था Iएक एक फूल ऐसे खिल आया था जैसे धरती ने अपना खजाना खोल दिया हो मगर सब मिट्टी में मिल गया I
सुबह हुई Iदोनों को कुछ सूझ नहीं रहा था कि अब क्या करें Iविश्वा बोली, ‘‘अब शहर जाकर क्या करेंगे जब बाग ही नहीं बचा I’’ मन नहीं माना तो टूटे मन से दोनों ही शहर की ओर चल दिए Iगाँव के कुछ लोग भी उनके साथ थे Iआज शहर में खूब सज -धज थी Iसभी मालिनें अपने परिवार और गाँव के संगी -साथियों के साथ खड़ी थीं Iनियत समय पर घोषणा हुई –
‘‘विश्वा का बाग आँधी से नष्ट हो गया Iअफसोस ! वह अब मुकाबले से बाहर है I’’
यह कैसी आँधी थी ! यह कैसा तूफान था ! कुछ समझ में नहीं आया तो ‘मेघदूत’ के कुबेर और यक्ष की ओर मेरा ध्यान चला गया Iकुबेर कैलाश -पर्वत पर बसी अलकापुरी का राजा था Iवहीं उसने यक्षों को भी बसाया था Iकुबेर ने एक यक्ष को रोज़ के आवश्यक कार्यों के लिए काम पर रखा था Iयक्ष से जाने -अनजाने में एक भूल हो गई Iन जाने आलस में या फिर कोताही में वह अपने कर्तव्य को ठीक से नहीं निभा पाया तो कुबेर ने उसे अलकापुरी से निष्कासित कर दिया Iयक्ष कर्तव्यच्युत हुआ तो उसे दंड मिला मगर यहाँ तो विश्वा रात -दिन एक कर अपना कर्तव्य निभाती है बल्कि कर्तव्य से भी बढ़कर सदा समर्पित रहती है Iकाम के लिए जीती है, काम के लिए मरती है Iफिर यह दंड कैसा ! गाँव -वासियों को उस पर नाज़ था कि वह गाँव का नाम रोशन करेगी Iअपने परिवार और कबीले को एक नई पहचान देगी Iनयी पीढ़ी उसकी तरह संघर्ष का संकल्प लेगी मगर सब खाक हो गया I
विश्वा का दिल बैठ गया Iसर चक्कर खाने लगा Iअब जीवन में अंधकार के सिवा कुछ बचा ही नहीं Iउसकी दशा देख भोला बेबस हो गया Iउसका सारा परिवार ही मानो निष्प्राण हो गया Iगाँव -वासियों की उम्मीद मिट्टी में मिल गई I
शाम का समय है Iपश्चिम में सूरज विदा होने को है Iपंछी -पखेरू चहचहाते हुए अपने बसेरों को लौट रहे हैं Iसूरज की किरणें धरती पर अपना लाल रंग उड़ेल रही हैं I विश्वा, भोला और गाँव -वासियों के साथ घर वापस आ रही है Iहर अँधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है Iकाले बादल की कोख में ही विद्युत -रेखा चमकती है Iजीवन का अर्थ भी यही है और उसूल भी यही है कि एक लौ भी जलाओ तो उजाला होगा Iबस सच्ची आँखों से देखो Iसच्चे हृदय से महसूस करो Iमनुष्य की कर्म -निष्ठा देखकर अगर हृदय में श्रद्धा उमड़ने लगे तो उसे गौरव प्रदान करो I
विश्वा का गाँव सुधी जनों का गाँव है – सच्ची आँखें, सच्चा हृदय Iआज पूरा गाँव दुल्हन की भाँति सजा है Iअनगिनत बुजुर्ग….., अनगिनत नौजवान…..,अनगिनत बच्चे…..अपनी विश्वा को लेने गाँव की सीमा तक जा रहे हैं Iविश्वा गाँव की सीमा पर पहुँच गई है Iढोल -नगाड़े बज रहे हैं Iविश्वा की जय -जयकार हो रही है Iग्रामीणों की भीड़ के साथ विश्वा अपने गाँव पहुँची Iबूढ़े बरगद के नीचे सब लोग इकट्ठा हुए Iगाँव का मुखिया ग्रामीणों के समूह से निकलकर सामने आया और उसने विश्वा को सबके सामने पुरस्कृत किया Iतालियाँ बज उठीं Iमुखिया के साथ ही गाँव -वासियों के स्वर वातावरण में गूँज उठे –
‘‘विश्वा ! तुम हमारे लिए अव्वल हो Iअव्वल से भी बढ़कर हो I
तुम्हारा जीवन -दीप हम सबके हृदय में कर्मठता की नई चिंगारी जलाएगा I
तुम्हारा जीवन -सौरभ तुम्हारे गुलाबों की भाँति सदा महकता रहेगा I
तुम्हारे यश की सुगंध दिशा -दिशा में फैल चुकी है Iतुम यशस्विनी हो I
तुम अद्भुत खिलाड़ी -सिपाही हो I
तुम ओजस्विनी हो, इतिहास के पन्नों में हो I
तुम हमारी कविताओं में, कहानियों में, गीतों में हो I’’
तभी मंद समीर का एक झोंका आया और बरगद की शाखों को हिला कर चला गया Iश्रद्धावनत पत्तियाँ विश्वा को अर्घ्य प्रदान करने लगीं I
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