बूढ़े जन को जब भी देखूँ,
बूढ़े तन को जब भी देखूँ
सारी ममता इन्हें लुटा दूँ, मन करता है I
अपना सारा प्रेम लुटा दूँ, यह लगता है I
बचपन में जब आँखें खोलीं
रीता जीवन रीता तन- मन
किसकी छाँह तले अब जाऊँ, यह लगता था I
किसकी अंगुली पकड़ चलूँ मैं, यह लगता था I
दादा -नाना का हाथ मिला
नानी- दादी का साथ मिला
ममता का आंँचल लहराया, मैं जान गई थी I
रीता जीवन अब भर आया, मैं मान गई थी I
फिर परंपराओं का मधुबन
फिर रीति- रिवाज़ों का आँगन
खिल गया चमन अब जीवन का, आश्वस्त हुई थी I
बह गया पवन शीतलता का, संतुष्ट हुई थी I
आदर्शों का सुंदर मेला
आगे बढ़ती जीवन- बेला
दादी जी से संस्कार मिले, मैं गागर भरती I
नाना- दादा से प्यार मिला,मन उज्ज्वल करती I

फिर परी -लोक का उद्घाटन
फिर कथा- कहानी का संगम
दादा जी की बोली, अनुभव की झोली है I
दादी जी की वाणी,अमृत की प्याली है I
बूढ़े जन सेवित- पूजित हैं
बूढ़े जन घर के दीपक हैं
रंग- रूप ढल जाता, यह तो अटल नियम है I
रंग- रूप को छोड़ो, यह तो परिवर्तन है I
बूढ़े दादा शक्तिहीन हैं
दादी भी सामर्थ्यहीन हैं
बूढ़े जन को देने की, बारी मेरी है I
सर्वस्व प्रेम लौटाने की, बारी मेरी है I
टिमटिम करतीं सूनी आँखें
राह देखतीं सूनी आँखें
कब आओगी कहती हैं तो, दिल कहता है I
पंख लगाकर उड़ कर पहुँचूँ, मन करता है I
उनकी पीड़ा मेरी पीड़ा
उनकी चिंता मेरी चिंता
उनकी छाया बनकर, हर पल साथ बिताऊँ I
कोई चिंता नहीं, उन्हें आभास कराऊँ I
बूढ़े जन से सुख- दुख बाँटूँ
प्यासे हैं पानी को पूछूँ
उनकी सारी पीड़ा हर लूँ,यही चाहिए I
उनकी व्यथा- कथा सब सुन लूँ, यही चाहिए I
अंधे की लाठी बन जाऊँ
अंगुली पकड़ राह दिखलाऊँ
सारी ममता इन्हें लुटा दूँ, मन करता है I
सारा अपना प्रेम लुटा दूँ, यह लगता है I
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