ये नदिया की धारा का, कल -कल छल -छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत ।
नदिया आगे बढ़ती जाती
हँसती खिलखिलाती
सात सुरों का सरगम गाती
मन ही मन मुसकाती
वैसे ही हम जग में देते, हँसने का संदेश ।
प्रेम की ख़ुशबू को फैलाते, सभी देश -परदेश ।
ये नदिया की धारा का, कल -कल छल-छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत।
एक देश से निकली धारा
दूजे देश में जाती।
रेगिस्तानों की रेती में
नवजीवन बिखराती
निकल पड़ें हम एक देश से, दूर देश तक जाएँ ।
देश धर्म की सीमा से, ऊँचा संसार बसाएँ ।
ये नदिया की धारा का, कल -कल छल -छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत ।
पर्वत -पर्वत खेली कूदी
मैदानों में आती
बाग़ -बगीचों में, खेतों में
हरियाली बिखराती
एक -एक के जीवन में हम, नव मुस्कान जगाएँ।
अपनी मिट्टी की ख़ुशबू से, दिशा -दिशा महकाएँ।
ये नदिया की धारा का, कल -कल छल -छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत।
उत्तर से निकली, दक्षिण के
सागर में मिल जाती
सौ सौ धारा वाली नदिया
एक रूप हो जाती
रंग-बिरंगे फूलों से, फुलवारी रंग – रंगीली।
दुनिया एक बसाएँगे हम, नवरस भरी सजीली ।
ये नदिया की धारा का, कल -कल छल -छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत ।
एक गगन के नीचे बहती
तन -मन को सहलाती
रची एक ही धरती प्रभु ने
सदा संदेशा देती
विश्व-बंधुता अपनाएँगे, नहीं करेंगे भूल ।
एक ही माला के धागे हैं, एक चमन के फूल ।
ये नदिया की धारा का, कल -कल छल -छल संगीत ।
इस धारा से मिलकर गाएँ, नव उमंग के गीत ।


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