बरसों से सुबह-सुबह हर रोज़ वहाँ जाती थी ,
फिर रजिस्टर खोल अपने दस्तख़त करती थी I
न जाने कैसा वह दिन आया
किसी ने मीठी आवाज़ में गुनगुनाया –
आज अंतिम बार दस्तख़त कर लो
यादगार के लिए फोटो भी खींच लो I
मन सिसक – सिसक रहा
होंठ मुसकुरा रहे
कँपकँपाती कलम से
दस्तख़त भी कर दिए
तरसाते ललचाते वे लम्हे याद आते हैं ,
मन की छत पर , पूरा घर बसा लेते हैं I
छोटी – सी गुजारिश है , दिल से न लगाना ,
जब भी स्कूल आऊँ , झूठी तसल्ली देना I
अलग से एक कागज पर दस्तख़त कराना ,
न किसी को मैं बताऊँ , न तुम बताना I
फिर कुछ अजीब – सा समय आया
किसी ने बड़े प्यार से फरमाया –
आती जाती रहना , अपना ही घर समझो
परंतु लाइब्रेरी के कार्ड वापस कर दो I
कार्ड सब समेट कर
प्यार से सहेज कर
स्नेह- हाथ फेर कर
बिन चाहे , लौटा दिए
जीवन के एकांत में , किताबें आती जाती हैं ,
हँसना सिखाती हैं , सूनापन मिटाती हैं I
उतरना, खेना , तैरना सिखाती हैं ,
हृदय से , मन से ऊँचा उठाती हैं I
दिली तमन्ना है , कोई इनसे मिला दो ,
मेरे दिल के टुकड़े, मेरे कार्ड तो दिला दो I
फिर बड़ा ही विचित्र क्षण आया
किसी ने कान में फुसफुसाया –
दुनिया – संसार मेला है , मिलते ही रहना
‘पहचान – पत्र’ जमा कर दो , यही था कहना I
टीस से निकाल कर
स्नेह से निहार कर
नेत्र – जल से सींच कर
पहचान – पत्र दे दिया
और अब –
गार्ड – कक्ष आते हैं , कौन आप ? कहते हैं ,
रफ्तार भरी ज़िंदगी में , अटकलें लगाते हैं I
सादा – सा वेश है , सादी पहचान है ,
सीधा – सरल जीवन , दिखावे से अनजान है I
भारतीय नागरिक ,पढ़ना पढ़ाना काम है ,
अध्यापक मेरा नाम , बस यही पहचान है I

फिर बुद्धि ने आकर द्वार खोले
हाथ फेर पीठ पर , कुछ बोल बोले –
‘‘यही तो जीवन – चक्र है , दस्तूर है
नव पौध की जगह बना , यही उसूल है I
संसार तो उपवन है
डाल – डाल पकने दो
पात – पात झरने दो
अलविदा कहने दो
और तभी अवसर पा , नव वसंत आएगा ,
डाल – पात खिल उठेंगे , उपवन मुसकाएगा I
हृदय से विनती है , कलियों को , फूलों को ,
नव बहार , नव पराग , नव सुगंध भरने दो I
बीजों को , अंकुर को , किसलय को ,कोपल को ,
उपजने – सँवरने का , खिलने का अवसर दो I’’
बुद्धि की हर बात से आँखें झुकीं और मन खिला ,
अधर मुसकुराए और बोल उठे – अलविदा ….अलविदा ….I
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